Tuesday 16 February 2016

muslim shakhs ne 35 lakh ka dan diya

मुस्लिम शख्स ने तिरुपति मंदिर के लिए दान किया 35 लाख का ट्रक:::::::::::



 चेन्नै के एक मुस्लिम शख्स ने धार्मिक सद्भाव और उदारता की एक खूबसूरत मिसाल पेश की है। अब्दुल गनी ने तिरुपति मंदिरतक सब्जियां पहुंटचाने के लिए एक रेफ्रिजरेटर ट्रक दान किया है।ट्रक की कीमत 35 लाख रुये है जिसे आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने सोमवार को हरी झंडी दिखाई। इस रेफ्रिजरेटर ट्रक की में तकरीबन आठ टन सब्जियां रखी जा सकती हैं। तिरुपति मंदिर में 'नित्य अन्नदानम' योजना के तहत जरूरतमंद लोगों को रोज खाना खिलाया जाता है। ट्रक इसी के मद्देनजर लिए रोज सब्जियां मंदिर पहुंचाएगा।इसके अलावा साल 2007 से मांडव कुटुंब राव और उनका परिवार इस योजनाके लिए लगातार सब्जियां दान कर रहा है।



 http://navbharattimes.indiatimes.com/state/other-states/other-cities/muslim-man-donates-truck-worth-35-lac-to-tirupati-temple-for-carrying-veggies/articleshow/51002898.cms?utm_source=facebook.com&utm_medium=referral&utm_campaign=Tirupati160216

Sunday 14 February 2016

hazrat umar ki shaan

हज़रत उमर – इंसाफ़ पसंद खलीफा




 रात का समय था। सारा मदीना शहर सोया पड़ा था। उसी समय हजरत उमरशहर से बाहर निकले। तीन मील जाने के बाद एक औरत दिखाई दी।वह कुछ पका रही थी। पास ही दो तीन बच्चे रो रहे थे। हजरत उमर ने उस औरत से पूछा, “ये बच्चे क्यों रो रहे है?” औरत ने जबाब दिया, “भूखे हैं। कई दिन से खानानहीं मिला। आज भी कुछ नहीं है। खाली हांडी में पानी डाल कर पकारही हूं।हजरत ने पूछा,“ऐसा क्यों कर रहीहो?”औरत ने जवाब दिया,“बच्चों का मनबहलाने के लिए।”हजरत उमर तड़प उठे। उसी समय वापस लौटे। खजाने से घी, आटा और खजूरें ली। नौकर से बोले, “इन्हें मेरी पीठ पर बांध दो।” नौकरी ने कहा, “यह आप क्या कर रहे हैं? मैं ले चलता हूं।” हजरतउमर ने जबाब दिया, “कयामत में मेरा र्बोझ तुम नहीं उठाओगे।”सब चीजें चह खुद लाद कर ले चले। उसी औरत के पास पहुंचे। उसने येचीजें देखी तो बहुत खुश हुई। जल्दी-जल्दी आटा गूंथा। हांडींचढ़ाई। हजरत उमर चूल्हा फूंकनेलगे। खाना तैयार हुआ। बच्चों ने पेट भर कर खाया। खाकर उछलने कूदने लगे। हजरत उमर देखते थे, खूब खुश होते थे। मां भी बहुत खुश थी। बार-बार दुआएं दे रही थी। कहती थी, “खलीफा तुमको होना चाहिए। उमर इस काबिल नहीं है।”बेचारी गरीब मां! उसे कौन बताताकि वह किस से बातें कर रही है।एक रात उमर फिर ऐसे ही घूम रहे थे। देखा एक बददू अपने खेमे के बाहर बैठा हुआ है। वह भी उसके पास जा बैठे। इधर-उधर की बातें होने लगी। बीच-बीच में कहीं से रोने की आवाज आ रही थी। पता लाग कि खेमे के भीतर कोई रो रहा है। पूछा, “कौन रो रहा है?”बददू ने जबाब दिया,“मेरी बीबी।”“क्या बात है?”“बच्चा होनेवाला है।”“क्या वह अकेली है।”“हां।”हजरत उमर घर लौटे। अपनी बीवी कोसाथ लिया। फिर वही आये। रोने कीआवाज उसी तरह आ रही थी। बददॅ से बोले, “यह मेरी बीवी है। तुम कहोतो यह भीतर चली जाय।”नेकी और पूछ-पूछ! बददू बहुत खुश हुआ। हजरत उमर की बीवी भीतर चलीगई। कुछ देर बाद बच्चा पैदा हुआ। भीतर से ही उनकी बीवी ने पुकारा,“अमीरुल मोमनीन, अपने साथी को बधाई दो।”बददू चौंक पड़ा “क्या कहा, अमीरुल मोमनीन! क्या यह मोमीनों के नेता, खलीफा, हजरत उमर है?”वह हाथ जोड़ने लगा। हजरत उमर बोले, “नहीं कोई बात नहीं। कल मेरे पास आना। बच्चे के लिए वजीफा बांध दूंगा।”एक रात घूमते-घूमते उनके कानों में गाने की आवाज आई। बड़ा दर्द-भरा गाना था। एक औरत अपनी खिड़की पर बैठी हुई गा रही थी “रात काली है और लम्बी होती जाती है। मेरा मालिक मेरे पास नहीं है….।“उस औरत को मालिक लड़ाई पर गया हुआ थ्ज्ञा। उसी की याद में वह गा रही थी। यह गाना सुनकर हजरत उमर बहुत दुखी हुए। सोचने लगे ” मैं अरब की औरतों पर जुल्म कर रहा हूं।”और वह सोच कर ही नहीं रह गये, तुरन्त हजरत हफसा के पास आये। पूछा, “औरत अपने मालिक के बिना कितने दिन रह सकती है?”जवाब मिला, “चार महीने।”सुबह होते ही हजरत उमर ने हर जगह आदेश भेज दिया कि कोई भी सिपाही चार महीने से ज्यादा बाहर न रहे।एक बार वह लागों को खाना खिला रहे थे। देखा कि एक आदमी बाये हाथ से खाना खा रहा है। वह उसके पास पहुंचे। बोले,“दाहिने हाथ से खाओ।”उसने जबाब दिया, “दाहिना हाथ नहीं हैं वह लड़ाई में जाता रहा।”उनका दिल भर आया। आंखों से आंसूबहने लगे।वहीं उसके पास बैठ गये। बोले,“अफसोस! तुमको वजू कौन कराता होगा? सिर कौन धोता होगा? कपड़ेकौन पहनाता होगा?”बाद में उसके लिए एक नौकर तैनातकर दिया। जरुरी चीजें अपने पास से दीं।हजरत उमर इस्लाम के दूसरे खलीफा थे। खलीफा राजा भी होते थे और पोप भी। वह राज भी करते थे और धर्म की रक्षा भी। वह बहुत बड़े थे। वह देश पर राज करते थे। देश के लोगों पर राज करते थे। लोगों के दिलों पर राज करतेथे। जो दिलों पर राज करता है, वही बड़ा है। ये कहानियां इस बात की गवाह है।हजरत मुहम्मद इस्लाम के पैगम्बर थे। पैगम्बर ईश्वर का सन्देश लानेवाला होता है। उन्होंने एक ईश्वर की पूजा का प्रचार किया। उन्होंने अरबों को एक कौम बनाया। उनके उपदेशों का सार था एक ईश्वर की पूजा करो। सब भाई-भाई हैं। कोई न ऊंचा है, न नीचा। बुरे कामों से बचो। नेक कामों में लगो। इसीका नाम उन्होंने इस्लाम रखा। इसकामतलब है अपने को भगवान को सौंप देना।उस जमाने के लोग बड़े खराब थे। इन बातों का विरोध करते थे। वे बहुत से देवी-देवताओं को मानते थे। आपस में लड़ते रहते थे। बुरे-बुरे काम करते, शराब पीते, जुआ खेलते, लड़कियों को मार डालते, पशु-बलि और नरबलि चढ़ाते। कुछ लोग तो अपने बेटों की बलि भी चढ़ा देते थे छूआछूत भी थी। ये सब लोक कबीलों में बंटे हुए थे।मक्के में उन दिनों सबसे बड़ा कुरैश का था। उनका सरदार मक्के पर राज करता था। वही काबे का रखवाला था। ये लोग नए धर्म के विरोधी थे। सब बराबर हैं ये इस बात को नहीं मानते थे। शुरु मेंउन लोगों ने मुहम्मदसाहब को लालच दिया, पर वह नहीं माने। इस पर वे मोहम्मद साहब और उनके साथियों को सताने लगे।हजरत उमर भी कुरैश थे। बहुत बहादुर थे। उनका डीलडौल बड़ा ऊंचा था। हमारो आदमियों में अलग दिखाई दे जाते। वह भी मुहम्मदसाहब के खिलाफ थे, लेकिन उनके बहनोई सईद मुसलमान हो चुके थे। उनके साथ उमर की बहन फातिमा भी मुसलमान हो गई थी। कई दूसरे लोग भी मुसलमान होगये थे। उनमें उनके घराने की एकदासी थी। उमर मुसलमानों के बैरी थे। वह उस दासी को खूब मारते थे। मारते-मारते थक जाते तो कहते, “जरा दम ले लूं तो फिर मारुंगा।”वह दूसरे लोगों को भी सताते थे, लेकिन नये धर्म का नशा बड़ा तेजथा। जिस पर चए़ जाता था, उतरता नहीं था। उमर बड़े परेशान हुए। एक भी आदमी धर्म नहीं छोड़ता। आखिर उन्ळोंने मुहम्मदसाहब को मार डालने का फैसला किया। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। बस, कमर में तलवार बांधी और घर से निकल पड़े।राह में एक साथी मिल गये। इनके तेवर चढ़े देखे तो पूछा“किधर जा रहे हैं?”जवाब दिया,“मुहम्मद का फैसला करने।”साथी ने कहा,“पहले घर की खबर लो। तुम्हारी बहन और बहनोई दोनों इस्लाम को मान चुके है।”उमर तुरन्त लौट पड़े। उसी तरह बहन के घर पहुंचे। बहन कुरआज पढ़ रही थी। आहट पाकर चुप हो गई। कुरआन छिपा दी; लेकिन आजवाजउमर के कानों में पड़ चुकी थी। पूछा, “क्या पढ़ रही थी?”बहन ने जवाब दिया,“कुछ नहीं।”बोले,“मैं सुन चुका हूं। तुम दोनों मुसलमान हो गये हो।”यह कहकर वह बहनोई की तरफ झपटे। वह उनको मारना चाहते थे। बहन बचाने दौड़ी। उमर ने उसका चेहरा भी लहूलुहान कर दिया। पर वह डरी नहीं, झिझकी तक नहीं। बोली, “उमर, जो जी में आवे, करो।”उमर का हाथ रुक गया। उसने अपनी बहन को देखा। उसके चेहरे पर एक भी शिकन नहीं थी। नहीं थी। डर नहीं था। आंखों में वही प्यार था। वह कह रही थी, “तू हमें इसलिए मारता है कि हम एक खुदा का मानते है। हां, मैं कहती हँ खुदा एक है, दूसरा कोई नहीं है। मुहम्मद उसका रसूल है। ले, अब मार डाल।”उमर का दिल धड़कने लगा। इतने निडर, इतने साहसी हैं ये लोग! मौत से भी नहीं घबराते। इस्लाम में इतनी ताकत है। उन्होंने फिर बहन की तरफ देखा। उसके बदन से अब भी खून बह रहा था। उमर का दिल भर आया। ऑखों में प्यार झलकने लगा। बोले, “तुम जो पढ़ रही थीं, मुझे भी सुनाओं।”फातमा कुरआन ले आई। उमर उसे पढ़ने लगे, गौर से पढ़ने लगे एक बारपढ़ा, दो बार पढ़ा, बार-बार पढ़ा। पढ़ चुके तो पुकार उठे, “अल्लाह एक है। मुहम्मद उसका रसूल है।”इसके बाद बहन और बहनोई से माफी मांगी। फिर हजरत मुहम्मद के पास पहुंचे। दरवाजा खटखटाया।किसी को भी इस नई कहानी का पता न था। कमर में तलवार बंध रही थी। वहॉँ जो लोग थे, वे कुछ घबराये। लेकिन एक साहब बोले,“आने दो। नीयत साफ है तो ठीक है, नहीं तो उसी तलवार से सिर काट दूंगा।उमर भीतर आये। मुहम्मदसाहब आग बढ़े उनका दामन पकड़ कर बोले, “क्यों उमर, कैसे आये हो?”उमर कांपने लगे। बोले“ईमान लाने के लिए।” यह सुनना था कि सबलोग एकदम पुकार उठे, “अल्हाहो अकबर!”यह पुकान बड़ी तेज थी, इतनी तेज कि मक्का की तमाम पहाड़ियॉँ गूंज उठी। क्यों न गूंजती, उमर मुहम्मद के साथ मिल गये थे। उमरकुरैश के एक बहुत बड़े सरदार थे। उमर इस्लाम के भी बड़े आदमीहुए।वह सबको बराबर समझते थे। गरीब और अमीर छोटे और बड़े सबका एक दरजा था। कहा करते थे, “अल्लाह नेकी और अच्छे कामों को देखता है। जन्म को नहीं देखता। उसकी नजर में सब बराबर है।” वह इन बातों को कहते हीं नहीं थे, मानते भी थे। वह अफसरों को भी टोकते रहते थे।हजरत उमर के लिए राज करने का मतलब था सेवा करना। वह अपने को मालिक नहीं समझते थे। एक बार एकबड़े आदमी मिलने आये। साथ में और लोग भी थे। आकर देखा वह आस्तीन चढाये इधर-उधर दौड़ते फिरते है। उन्हें देखा तो बोले,“आओ, तुम भी मेरा साथ दो।” आनेवाले ने पूछा, “खैर तो है! क्या हो गया?”बोले,“खजाने से एक ऊंट भाग गया है। एक ऊंट में कितने गरीबों काहक शामिल है।”एक आदमी बोल उठा,“अमीरुल मोमनीन, आप क्यों परेशान हो रहेहैं? किसी गुलाम को कहिये, वह ढूंढ लावेगा।”उन्होंने फौरन कहा,“मुझसे बढ़कर कौन गुलाम हो सकता है!”वह बड़ी सादगी से रहते थे। जमीनपर सोते थे। खाना बड़ा सादा खाते थे। महीनों गेहूं का आटा घर में नहीं पकता था। छानते तो कभी भी नहीं थे। कपड़े भी सादे होते। अक्सर उनमें पैबन्द लगा रहता। बदन पर फटा हुआ कुरता, सिर पर फटा हुआ अमाया, पैरों में फटी हुई जूतियां। एकबार देर तक घर से नहीं निकले। बाहर लाग राह देख रहे थे। आये तो कारण मालूम हुआ। पहनने को कपड़े न थे, सो बदन के कपड़ों को धोया था। सूख गये तो पहन कर बाहर आये।कभी कन्धे पर मशक लिये जा रहे है। बेवा औरतों के घर पानी भरनाहै। कभी मस्जिद के कोने में जमीन पर लेटे हैं। काम करते-करते थक गये हैं। बार-बार बादशाही काम से सफर करते, पर साथ में न खेमा, न शामियाना। न फौज, न फाटा। किसी पेड़ पर कपड़ा डाल दिया जाता। उसी की छॉह में इस्लाम का वह महान खलीफा आराम करता।एक बार वह सीरिया गये। साथ में बस एक नौकर था। राह में आप उसके ऊंट पर सवार हो गये। शायद गलती से ऐसा हुआ था। जान-बूझ कर भी हो सकता है। जो हो, ऊंट बदल गया। उनका ऊंट कुछ सजा हुआ था। जब शहर में पहुंचे तो लोग स्वागत करने आये। बड़ा मजा आया। लोग नौकर की तरफ जाते। उसी को खलीफासमझते। वह हजरत उमर की तरफ इशारा करता। लोग हैरान-परेशान, आखिर खलीफा कौन से है? बेचारे शान शौकत ढूंढते थे, पर हजरत उमर के पास कहॉँ मिलती!यह बात नहीं कि वह कंजूस थे। असल में उनको लोगों के सामने मिसाल रखनी थी। खुद ऐश करते तो लोगों से क्या कहते! वह जानते थे कि अफसर बिगड़ते जा रहे है। इसलिए अपने पर कुछ अधिक सख्ती करते थे।





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